लगभग 26% विश्व की जनसंख्या सुरक्षित पेयजल से वंचित है। (2023 वाटर कॉन्फ्रेंस यूनेस्को)
भारत में लगभग 21% जनसंख्या के पास सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है।
पानी हमारे जीवनयापन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्या हमने कभी सोचा था कि जिस पानी को हम रोज यूं ही बहा देते हैं, वह एक दिन हमारी सबसे बड़ी जरूरत और सबसे बड़ी कमी बन सकती है? आज दुनिया के कई हिस्से जल संकट की भयंकर मार झेल रहे हैं। भारत भी इस संकट की चपेट में है। पानी जो कभी असीमित लगता था, अब सीमित होता जा रहा है। यह संकट अब केवल पर्यावरणीय नहीं, अपितु सामाजिक, राजनीतिक और स्वास्थ्य से जुड़ा बड़ा मुद्दा बन चुका है।
जल संकट का वर्तमान स्वरूप और उदाहरण
भारत में लगभग 600 मिलियन लोग पानी की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। (नीति आयोग की रिपोर्ट 2023 के अनुसार) हर साल भू-जल का स्तर औसतन 10 सेंटी मीटर गिरता जा रहा है। और तो और, 2030 तक भारत की 40% आबादी को पीने योग्य पानी नहीं मिल पाएगा, यह चेतावनी पहले ही दी जा चुकी है। लेकिन फिर भी हमारी सरकार ने उसे बचाने के लिए क्या किया है? आज हमारी नजर के सामने कई ऐसे शहर आते हैं, जहां पानी की कमी अपने चरम पर है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुंबई है, जहां हम आए दिन देखते हैं किस तरह से आम जनता चॉल वगैरा में पानी के लिए घंटों लाइन में लगी रहती है। पूंजीपतियों को इसकी कोई फिक्र नहीं, उनके पास मनमाना पैसा है जिसकी मदद से वो पानी तक को खरीद सकते हैं, लेकिन आम जनता के लिए यह मुमकिन नहीं है। जो दो वक्त की रोटी भी दिहाड़ी मिलने पर खाते हैं, वे भला पानी कैसे खरीदेंगे! वे तो वही पानी पीते हैं, जो दूषित होता है या ये कहैं कि पूंजीपतियों से बच जाने पर जो भी मिलता है वह उनके हिस्से में आता है। कोई पानी खरीदे भी तो क्यों? हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि हमें पानी बचाना चाहिए। बारिश के पानी को छत पर एकत्रित करके किसी टैंक में जमा कर सकते हैं, जो कि सिंचाई, सफाई या अन्य घरेलू उपयोग में काम आ सकते हैं। हम सब जानते हैं पानी हमारे जीवनयापन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है फिर भी हम उसे बर्बाद कर रहे हैं।
आज के दौर में पानी राजनीतिक शस्त्र बन चुका है। इसका बहुत बड़ा उदाहरण आज हमारे सामने फिलिस्तीन है। जल का अधिकार मानव का मूलभूत अधिकार है, लेकिन फिलिस्तीन के नागरिकों के लिए यह अधिकार एक लंबे समय से बाधित है। वहाँ पानी केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि राजनीतिक नियंत्रण और संघर्ष का साधन बन चुका है। यह संकट केवल प्यास की नहीं, बल्कि गरिमा, अस्तित्व और स्वतंत्रता की लड़ाई से जुड़ चुका है। फिलीस्तीन में जल स्रोतों पर इज़राइल का नियंत्रण है, जिससे वहाँ के नागरिकों को एक सप्ताह में केवल 20-30 लीटर पानी ही मिल पाता है, जबकि WHO के अनुसार एक इंसान को कम से कम 100 लीटर प्रतिदिन चाहिए। वहाँ पानी अब ज़रूरत नहीं, बल्कि एक ‘हथियार’ बन चुका है। गाज़ा पट्टी (Gaza Strip), जो पहले से ही एक घनी आबादी वाला क्षेत्र है, 2007 से इज़राइली नाकेबंदी के कारण एक खुले जेल जैसा बन चुका है। यहाँ की जल आपूर्ति की स्थिति बेहद भयावह है। यहां 95% से अधिक पानी पीने योग्य नहीं है, क्योंकि वह या तो समुद्री जल से खारा हो गया है या नालियों के अपशिष्ट से प्रदूषित है। जल आपूर्ति की बाधा के कारण स्वच्छता और साफ-सफाई की स्थिति बदतर है, जिससे महामारी फैल रही है और बच्चों में त्वचा रोग, कुपोषण और डायरिया जैसे रोग आम हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इसे बार-बार मानवाधिकारों का उल्लंघन कहा है। Human Rights Watch और अन्य संगठनों ने बताया है कि जल पर इज़राइली नियंत्रण “दण्डात्मक और भेदभावपूर्ण” है। फिलिस्तीन की जल समस्या को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे वहाँ की अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी असर पड़ा है। फिलिस्तीन में जल संकट केवल पानी की उपलब्धता की समस्या नहीं है, यह एक राजनीतिक, सामाजिक और मानवीय आपदा बन चुका है। जब तक जल पर नियंत्रण एक पक्ष के हाथ में रहेगा, तब तक शांति और विकास की कोई भी कोशिश अधूरी ही रहेगी।
महाकुंभ 2024 (प्रयागराज)
भारत में जहां एक ओर गंगा नदी को माता कहा जाता है, वहीं दूसरी ओर उसी गंगा नदी को हम लगातार दूषित कर रहे हैं। सरकार ने गंगा नदी की सफाई के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत 2024 तक, लगभग दस सालों में करीब 40,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं, पर इन सबके बावजूद गंगा नदी व अन्य नदियों की हालत में कुछ खास सुधार देखने को नहीं मिला। इसके चलते 2024 में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में, जो आस्था का सबसे बड़ा संगम था, जहाँ लगभग 65 करोड़ श्रद्धालु गंगा-यमुना के पवित्र संगम में स्नान के लिए आए, पर इन श्रद्धालुओं को सरकार की इस नाकामी की वजह से स्नान के लिए स्वच्छ जल तक नसीब नहीं हुआ । इन पूरे 45 दिनों तक लगातार संगम का पानी दूषित रहा, जो स्नान लायक नहीं था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह बताया गया कि आयोजन के दौरान गंगा और यमुना के जल में प्रदूषण का स्तर कई स्थानों पर “असंतोषजनक” है। बी.ओ.डी. (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) की मात्रा बढ़ने के कारण प्रदूषित जल जलीय जीवों के लिए भी हानिकारक हो गया। परिणामस्वरूप कुंभ के दौरान और उसके बाद हजारों लोग त्वचा संबंधी रोग, डायरिया, आंखों में जलन और फंगल इन्फेक्शन जैसी बीमारियों से ग्रसित हुए। प्रयागराज स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार कुंभ मेले के दौरान करीब 25,000 से अधिक संक्रमण के मामले दर्ज हुए। ज्यादातर लोग मध्यम एवं मजदूर वर्ग के थे, जिन्हें इन स्वास्थ्य समस्याओं के चलते अपना काम छोड़ना पड़ा होगा तथा आर्थिक व अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा । इतना ही नहीं, इस धार्मिक आयोजन के दौरान गंगा और यमुना में साबुन, तेल, कपड़े, फूल, प्लास्टिक और अन्य कचरे का खुलकर प्रवाह हुआ, जिससे इन पवित्र नदियों का जल और भी दूषित हो गया। यहाँ प्रशासन को इन सभी तरह के सामानों के निपटारे के लिए उचित व्यवस्था करना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और जल प्रदूषित होता रहा और वह केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट को झूठलाता रहा।
जल संकट का समाधान
आज भारत जल संकट की ओर तेजी से बढ़ रहा है। भूजल स्तर लगातार गिर रहा है, गांवों और शहरों में जल की उपलब्धता कम होती जा रही है और कई राज्यों में पानी के लिए हिंसा तक की घटनाएं हो चुकी हैं। इस जल संकट का समाधान संभव है, बस नीयत और दृष्टिकोण की ज़रूरत है। नदी में फैक्ट्रियों का गंदा पानी, साबुन, प्लास्टिक, फूल, केमिकल से बनी मिट्टी की मूर्तियां तथा अन्य तरह के दूषित पदार्थों को बहाने पर प्रतिबंध लगाया जाए तथा नियम तोड़ने वालों के साथ सख्ती से निपटा जाए। पानी के पुनः उपयोग, वर्षा जल संचयन और वैज्ञानिक तरीके से नदी की सफाई की पुख्ता व्यवस्था की जाए।
जल हमारे जीवन का आधार है और हमारे उज्ज्वल भविष्य की नींव है। आज पूंजीपति वर्ग इसे मुनाफा कमाने की वस्तु बना चुका है। पहले रेलवे स्टेशनों पर रेलवे विभाग की ओर से साफ़ पीने योग्य पानी की व्यवस्था होती थी, लेकिन अब उसे लगभग खत्म ही किया जा चुका है। अब सभी सार्वजनिक स्थलों पर प्लास्टिक बोतल में पानी बिक रहा है। यहां तक कि निजी होटलों में भी अब नि:शुल्क पानी की व्यवस्था नहीं होती है। अब सभी जगहों पर पानी खरीद कर पीना पड़ता है। अब शहरों में गली-गली में मोटर पंप लगाकर प्राकृतिक पानी का बड़े पैमाने पर दोहन किया जा रहा है और उसे बेचा जा रहा है। इससे शहरों में जल का स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है। अब यह प्राकृतिक जीवनदायिनी पदार्थ पूंजीपतियों के मुनाफे की मानसिकता की भेंट चढ़ चुका है। यदि आज हम इस जल संकट के विरुद्ध मजबूती से खड़े नहीं हुए, तो ये पूंजीपति और उसकी सरकार इस प्राकृतिक संसाधन और सामाजिक संपदा को बूरी तरह दूषित कर बर्बाद कर देंगे। इसके बाद दो देशों के बीच पानी के लिए युद्ध होगा। इस युद्ध से बचने के लिए जितना जल्दी हो इस पूंजीवादी व्यवस्था को बदल देना चाहिए।