इस वर्ष अप्रैल में, हार्वर्ड ने फिलिस्तीनी समर्थक प्रदर्शनों को प्रतिबंधित करने और विविधता से संबंधित पहलों को रोकने की संघीय मांगों का पालन करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने, हार्वर्ड को मिलने वाली 2.6 बिलियन डॉलर से ज़्यादा की संघीय शोध निधि (फेडरल रिसर्च फंडिंग) पर रोक लगा दी। ट्रम्प ने कहा, कि वह हार्वर्ड और अमेरिका भर में अन्य शीर्ष-स्तरीय विश्वविद्यालयों को अपने गतिविधियों में परिवर्तन के लिए मजबूर करेंगे, क्योंकि उनके विचार में वे वामपंथी जागृत विचारों द्वारा कब्जा कर लिए गए हैं और यहूदी विरोधी विचारों के गढ़ बन गए हैं। साथ ही ट्रम्प यह भी प्रयास कर रहे हैं कि हार्वर्ड के संघीय वित्त पोषण को व्यावसायिक स्कूलों (ट्रेड स्कूलों ) में स्थानांतरित करें।
इस मामले में हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने अप्रैल में ट्रम्प प्रशासन पर मुकदमा दायर किया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि फंडिंग पर रोक विद्यार्थियों और नागरिकों के विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है तथा यह मनमानी और गैर लोकतान्त्रिक है। यूनिवर्सिटी ने इस तथ्य को जनता के सामने रेखांकित किया कि फंडिंग पर रोक से राष्ट्रीय सुरक्षा, कैंसर और अन्य बीमारियों पर शोध प्रभावित होगा।
वहीं दूसरी तरफ होमलैंड सुरक्षा सचिव क्रिस्टी नोएम ने एक पत्र में हार्वर्ड पर “यहूदी छात्रों के प्रति शत्रुता, हमास समर्थक सहानुभूति को बढ़ावा देने” और नस्लवादी विविधता, समानता और समावेशन नीतियों को लागू करने वाले असुरक्षित माहौल को परिसर में बनाए रखने का आरोप लगाया गया। साथ ही उन्होंने बड़ी बेशर्मी से यह भी धमकी दी कि जब तक हार्वर्ड संघीय मांगों का अनुपालन नहीं करता, तब तक अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को आगामी सत्र में विश्वविद्यालय में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी। अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को वीजा (visa) देने से भी इनकार कर दिया ।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने इसे एक गैरकानूनी कदम बताया है। इससे हार्वर्ड में पहले से पढ़ रहे छात्रों को बाहर स्थानांतरित होने के लिए मजबूर होना पड़ेगा तथा अमेरिका में रहने के अपने कानूनी अधिकारों से भी हाथ धोना पड़ेगा। विश्वविद्यालय के प्रवक्ता जेसन ए न्यूटन ने एक लिखित बयान में बताया कि, अंतर्राष्ट्रीय छात्र और शिक्षक वहाँ 140 से भी अधिक देशों से आते हैं। यही वो प्रवासी हैं जो विश्वविद्यालय समेत अमेरिका की अर्थव्यवस्था को समृद्ध करते हैं।
23 मई 2025 अमेरिकी जिला न्यायाधीश एलिसन बरोज़ ने अस्थाई रूप से फैसला सुनाया कि सरकार हार्वर्ड के नए विदेशी छात्रों के संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले ट्रम्प के कार्यकारी आदेश को लागू नहीं कर सकती । इस पूरी कार्यवाही को देखकर ये समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि इस पूंजीवादी व्यवस्था में कैसे साम्राज्यवादी और फासीवादी ताकतें घिनौने ढंग से मुनाफा कमाने और सत्ता में बने रहने के लिए अपने काम को पूरी बेशर्मी से अंजाम देते हैं। चाहे लोगों को झूठे प्रचार से गुमराह करना हो, आपस में लडाना हो, युद्ध के लिए राजनैतिक जमीन तैयार करना हो, या जनता की लोकतान्त्रिक और जनवादी अधिकारों को मनमाने ढंग से कुचलना हो, ये किसी भी हथकंडे से बाज़ नहीं आते। कैसे यह मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था मेहनतकश वर्ग व आम जनता पर शोषण का शिकंजा कसती जा रही है, और समाज को हर तरह के पतन की ओर ले जा रही है यह अब दिन के उजाले की तरह साफ़ हो गया है। आम जनता के बीच से एक उत्पीड़ित राष्ट्र फिलिस्तीन और उसकी जनता पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ बोलना साम्राज्यवादी ताकतों को किसी भी हाल में रास नहीं आ रहा। ये बताया जा रहा है कि इस मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ बोलने का क्या अंजाम होगा।